Sunday, 16 February 2014

केजरीवाल लोकसभा चुनाबी अभियान


तमाम अटकलें को खारिज करते हुए केजरीवाल साहब ने यह स्पष्ट कर दिया है की उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए थोड़ा वक़्त चाहिए शायद इसलिए ही उन्होने इस्तीफा देने की इतनी जल्दी की | थोड़ा अपच सी बात लगती है कि जो व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा था वो अब कुर्सी के लिए लड़ रहा है | शायद केजरीवाल जी को कुर्सी का चस्का लग गया है | अब वो पूरी तरह से समर्पित है अपने लोकसभा कैम्पेन के लिए |

खैर ये बात तो स्पष्ट हो गयी है कि केजरीवाल वाकई दैवी बुद्धि के धनी हैं उन्हें खुद नहीं पता होता कि कल जागकर वो क्या नया वखेड़ा खड़ा करने वाले हैं | तमाम घटनाएँ जो अभी हो रही हैं उन्होने राजनीति को बदला भी है और धूमिल भी किया है | केजरीवाल साहब अभी तक समझ नहीं पाये हैं कि बातें बनाना कितना आसान है और काम करना कितना मुश्किल | आप अगर मुख्यमंत्री हो और जो आप सोचें वो सहज ही हो जाए ये तो कुछ हजम नहीं होता | मौजूदा सरकार का विरोध करके विपक्ष तो अपनी भूमिका अच्छी निभा रहा है पर आप शायद अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं |

आम आदमी पार्टी लड़ने की बात करती है और एक ही दिन मे हार मान गयी ये बात कुछ हजम नहीं हुई | आप जनता को अपना लोकपाल देके क्या उखाड़ लोगे जबकि आप खुद ही इसके लिए नहीं लड़ सकते | ये तो कोई भी कर सकता है कि लोकपाल बिल पास नहीं हुआ क्योकि कॉंग्रेस और बीजेपी ने पास नहीं होने दिया | आप लड़ो उनसे उन्हें समझाओ यही तो सत्ता मे रहकर शासन करने के सही मायने हैं |

जो आप सोचें वो हो जाए जो आप सोचें वो सही हो ये बातें थोड़ी बचकानी लगती हैं | मुझे लगता है जो हमेशा खुद को सही ठहराने की कोशिश करता है वो बेवकूफ होता है | आप देश के लिए जान देने कि बात करते हैं और एक दिन भी विपक्ष के सामने न टिक सके ऐसे आप स्वराज दिलाएँगे जब आप खुद का बचाव नहीं कर पा रहे हैं | आप खुद के मुद्दे ही सही ढंग से जनता के सामने नहीं रख पा रहे हैं |

लोकपाल बिल विधानसभा मे प्रस्तावित करना और एक दिन मे ही विपक्ष के विरोध पर उसे छोडकर दुबारा चुनाव कराने कि अपील करना, ये शायद इस पूरे घटनाक्रम मे सबसे आसान कदम था और इसका फायदा भी आम आदमी पार्टी को हुआ | सस्ती लोकप्रियता और लोगों के दिल मे जगह बनाने के लिहाज से यह बड़ा ही उपयुक्त कदम हैं परंतु एक शासक के नाते ये बड़ा ही बेहूदा फैसला है | ज़िम्मेदारी से भागना और अपनी नाकामयाबी का ढ़ोल किसी और पर पीटना कोई बहदुरी या देशभक्ति नहीं है ये एक बचकानी हरकत है जो अक्सर नौसिखियों मे देखने को मिलती हैं |

अगर ये सब इसलिए था कि आपको लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए वक़्त चाहिए तो मे आपके इस फैसले कि प्रशंसा करता हूँ पर इसमे देश की सेवा कहीं दिखाई नहीं दी क्योंकि आप को 10 या 15 से ज्यादा सीट तो मिलने से रही जिससे आप लोगों के लिए न तो ढंग से कुछ कर पाएंगे और न ही ढंग से विपक्ष मे ही बैठ पाएंगे | दिल्ली मे आप जीत गए क्योंकि आपने ऐसा अजीब माहौल बनाया जो अकल्पनीय था | कॉंग्रेस के प्रति लोगों का गुस्सा आप के वोटों मे तब्दील हो गया | तो इसमे शायद आप की लोकप्रियता नहीं बल्कि कॉंग्रेस कि नकामयाबी का बड़ा हाथ है जो आपको फायदा दे गया | सरकार भी आप ने कॉंग्रेस के सहयोग से बनाई है इसका मतलब तो यही है कि आप और कॉंग्रेस मिले हुए है और केजरीवाल खामोखाँ बीजेपी पर आरोप लगा रहे हैं |

इस लिहाज से तो आप और भी गए गुजरे हैं जिसने तुम्हें वोट दिलाये, लोकप्रियता दिलाई और मुख्यमंत्री बनने मे मदद कि आप उसी कि बुराई करने मे जुटे हैं | खैर जो चल रहा है चलने दो और देखते रहो आगे क्या होता है |

Friday, 14 February 2014

केजरीवाल और कुर्सी

आज शायद राजनीति के हिसाब से एक एतिहासिक दिन है | अभी कुछ देर पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल जी इस्तीफा देने का मन बना चुके है | सिर्फ 49 दिन चली ये आम आदमी की सरकार वो कर के चली गयी जिसकी शायद ही किसी को उम्मीद ना थी | इस्तीफा देने का मुख्य कारण जो सामने आया है वो है जन लोकपाल बिल | कॉंग्रेस और बीजेपी दोनों इस बार एक होते दिखाई दी | विधानसभा की कार्यवाही को सिरे से ही बहिष्कृत कर दिया गया | ऐसा लगता है की दोनों पहले से मन बना के आए थे की विधानसभा मे क्या करना है | विधानसभा के अंदर तांडव जैसा माहौल था | मुझे तो डर लगने लगा है अगर मुख्यमंत्री की कोई वैल्यू नहीं रही तो हम आम आदमी की क्या औकात है |


जो लोग हमेशा हम आम लोगों को धर्म, जाति, और समाज के नाम पर लड़ाते आए हैं उन्हें आपस मे लड़ते हुए देखकर रोमांच का अनुभव होता है | ये लोग तो हमसे भी गए गुजरे हैं | मुझे लगता है ये लोग उन कुत्तों की तरह हैं जो बीच मे पड़ी रोटी के लिए लड़ते रहते हैं |

कौन कहता है की देश मे एकता नहीं है | जब भी कभी नेताओं की सैलरी और भत्ते बढ़ाने की बात होती है तब नेता एक होते हैं | जब भी कभी पैसे खाने की बात होती हैं तो नेता साथ होते हैं, जब भी कभी ऐसे बिल पास होने की बात होती है जो उनकी ही गरेवान पकड़ ले तो नेता साथ होते हैं | हमें इन एक सूत्र मे बंधे हुए नेताओं की एकता संबंधी विचारो का आदर करना चाहिए | सच मे कितने महान हैं ये लोग |

केजरीवाल ने यह एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है जो एक तरफ तो यह दर्शाता है की उन्होने सीएम की कुर्सी छोड़ी क्योकि वो जनता के लिए जन लोकपाल बिल पास न करा सके परंतु वो जाते जाते दुबारा चुनाव कराने का मशवरा दे गए | जो उनकी मंशा और इस्तीफा देने के कारण को स्पष्ट करता है | कॉंग्रेस और बीजेपी इसे चुनावी स्टंट मन रही है | बीजेपी विपक्ष मे रहकर अपनी भूमिका अच्छी तरह निभा रही है परंतु कॉंग्रेस का कुछ समझ मे नहीं आ रहा है | केजरीवाल को समर्थन देते हुए उसका विरोध कर रही है या जन लोकपाल बिल का विरोध कर रही है | केजरीवाल जी ने आज एक बात सच कही की अच्छा किया जो जन लोकपाल बिल पास नहीं होने दिया अगर पास हो जाता तो कॉंग्रेस और बीजेपी के आधे विधायक जेल मे होते |

सच कहूँ तो ये तय था कि कॉंग्रेस और बीजेपी जन लोकपाल बिल पास नहीं होने देंगे परंतु क्या ये भी तय था कि केजरीवाल आज इस्तीफा देंगे | ये शायद इस घटनाक्रम मे बड़ा सवाल उभर के आता है | केजरीवाल साहब कॉंग्रेस और बीजेपी की राजनीतिक मंशा से भली भांति से परिचित हैं तो क्यों ना इस इस्तीफे के घटना क्रम को सोची समझी चाल माना जाए | सिर्फ एक दिन के प्रयास के बाद ही दम तोड़ देना | या तो केजरीवाल को ये पता था कि ये बिल कभी पास नहीं हो सकता या फिर वो इसी मौके कि तलाश मे भटक रहे थे | खैर इसके पीछे की राजनीतिक मंशा का पूरा विवरण तो मैं आपको नहीं दे पाऊँगा परंतु इतना जरूर कहना चाहूँगा कि जितना काम केजरीवाल ने इन डेढ़ महीनों मे किया है शायद औरों को इसमें एक साल लग जाती | अब राजस्थान की सरकार को ही ले लो डेढ़ महीनों मैं एक पत्ता भी शायद हिलाया हो | दूसरों के कपड़े फाड़ने से पहले अपनी गरेवान मजबूत कर लेनी चाहिए |

kejriwal
राजनीति मे आजकल अचानक से परिवर्तन आया है | नेता पैसा खाने की वजाय गरीबों के बारे मे सोचने मे लगे है | यहाँ तक कि राहुल गांधी भी रेल बजट पेश करने के लिए कुलियों की सलाह ले रहा है | अब शायद इन्हें अपने उच्च शिक्षित सलाहकारों पर भरोशा नहीं रहा या फिर उनका दिमाग कॉंग्रेस के साथ रह रह के भंगार हो गया हैं अब उन्हें जन हित के लिए सोचने मे परेशानी जो आ रही है, हाँ घोटाला कैसे करना है इसका प्लान उनके पास पहले से ही तैयार मिलेगा |

केजरीवाल जी ने बड़ी मछ्ली फाँसने कि लिए जाल फेंक तो दिया है पर कहीं ऐसा न हो कि बड़ी मछ्ली भी न फसे और छोटी मछलिया भी जाल से निकल जाए | वैसे लोकसभा चुनाव की तैयारी का ये ही बिलकुल सही वक़्त है क्या ये एक बड़ी लड़ाई का आगाज है ?

Tuesday, 11 February 2014

केजरीवाल बनाम समझदारी

इन दिनों टेलीविज़न पर जो खबरें आ रही हैं उन्हें देखकर हर कोई ये सवाल जरूर पूछना चाहता है कि क्या केजरीवाल साहब बाकई समझदार है या वो खुद समझने की कोशिश कर रहे हैं| उनके किए तकरीबन हर काम में वो उलझ से गए हैं| उनके सारे काम बचकाने से प्रतीत होते हैं| चाहे वो जनता दरबार हो या लोकपाल बिल | वो हर तरफ मुसीबतों के बोझ से जैसे दबते जा रहे हैं | वो जब भी कोई अच्छा काम करने जाते हैं, साथ में मुसीबतों का पिटारा भी साथ ले जाते हैं | अच्छे खासे महान विचार की धज्जियां उड़ जाती हैं और वो इस का ठीकरा औरों पर फोड़ देते हैं | केजरीवाल जी ये दावा करते हैं कि राजनीति से उनका कोई लेना देना नहीं है परंतु राजनीति का एक दाव वो अच्छी तरह से जानते हैं | अगर कुछ गड़बड़ हो जाती है तो वे इसका दोष विपक्ष पर मढ़ देते हैं | वैसे सच कहूँ तो राजनीति का यह अश्त्र कई वर्षों से कारगर रहा है |
arvind kejriwal

खैर अगर हम केजरीवाल जी के पुराने जीवन को देखें तो ये इनकी सराफ़त और ईमानदारी को बखूबी स्पष्ट करता है | हम सब जानते हैं कि जिस नौकरी को छोडकर वो आए हैं उसमे वो बहुत पैसा कमा सकते थे परंतु उन्होने ऐसा नहीं किया | जब आदमी का जी गले तक भर जाता है तब ही वो ऐसे कदम उठाने पर मजबूर होता है जो सामान्यतया देखने को नहीं मिलते हैं | इस भ्रष्टाचार और अराजकता से तो में भी परेशान हूँ पर मुझ में इतनी हिम्मत नहीं कि में सड़क पर बैठकर आंदोलन कर सकूँ | उन्होने इसके बहुत मेहनत की है | संभवतया दो साल तक हर रात उन्होने ये सोचते हुए बिताई है कि कल क्या नई मुसीबत मुझे देखने को मिलेगी | इसके लिए उन्होने अपना सुख चैन नौकरी दाव पर लगाई है खैर इसका मीठा फल वो अभी खा रहे है कभी कभी उसमे बीज निकाल आते हैं वो अलग बात है |

सिर्फ दो सालों कि जद्दोजहद के बाद वो मुख्यमंत्री बने ये अपने आप मे एक मिसाल है | मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिये बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं |शुक्र है इन्हें किसी के पीछे खड़े होकर पार्टी के नारे नहीं लगाने पड़े नहीं तो उनका गला और बैठ जाता | पॉज़िटिव सोचने पर उनका व्यक्तित्व किसी चलचित्र के पात्र जैसा लगता है | लगता है मानो उस चमचमाती कुर्सी पर बैठने के लिए ही वो पैदा हुए हैं | आदमी का वक़्त बदलते देर नहीं लगती एक मामूली आदमी इतना लंबा सफर इतने कम समय मे तय कर सकता है इस बात को कोई अब अतिशयोक्ति नहीं समझेगा |

मुझे लगता है शायद हम मुद्दे से भटक गए हैं | हाल ही में केजरीवाल इस बात पे आड़े हैं कि वो लोकपाल बिल पास करेंगे और विधानसभा सत्र सरकारी इमारत मे नहीं बल्कि खुले मैदान मे चलाएँगे | तमाम अन्य पार्टियां शायद इसलिए इसका विरोध कर रही हैं क्योंकि उन्हें बाहर धूप मे बैठने कि ज्यादा आदत जो नहीं है | और केजरीवाल जी को तो आप जानते हैं वो तो मुख्यमंत्री बनने के बाद भी आधी रातें सड़क पर ही सोये हैं | उनकी पैरा मिलिट्री बल बुलाने कि बात भी हजम होती है पर उसका जो खर्चा होगा वो कौन देगा इस बात का जिक्र करना शायद वो भूल गए हैं |

बिजली बालों से तो उनका पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा है बार बार झटके खाने के बाद भी वो डटके खड़े हैं | आदतें मे थोड़ा सुधार आया है अब वो खुद जाकर लोगों की बिजली ठीक नहीं करते हैं | वैसे बिजली के तार लगाकर समाज सेवा करने का उनका आइडिया नायाब था | बिजली वाले भी कम नहीं हैं इधर इन्होने बिजली के दाम घटाए उधर उन्होने बिजली ही बंद कर दी | शेर और सवाशेर कि लड़ाई मे कोन जीतता हैं ये तो वक़्त ही बताएगा |

मैं बस भगवान से यही दुआ करूंगा कि आपको रात मे चैन की नींद आए ताकि आप सुबह कुछ उल्टा पुलटा न करें |

अगर आप केजरीवाल जी कि “आम आदमी पार्टी” से प्रभावित है तो नीचे दिया गए लिंक पर क्लिक कर अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं |
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“जय हिन्द”

Monday, 10 February 2014

गरीब : एक उपहास

आजकल “गरीब” बेहद उपयोगी वस्तु है। चारो तरफ गरीब की मॉग बढती जा रही है। इन दिनों नेता जी भी इन्हें खूब भाव दे रहें हैं। किसी भी नेता जी का आप भाषण सुनें उनके पास एक ही विषय है जिसके जरिये वो वोट मांगते नजर आते हैं वह है "गरीब"। "गरीब" आजकल चुनावी भाषण की शान बन गया है। यही वो वक्त है जब "गरीब" की जय जयकार होती है। वैसे हम और आप "गरीब" ही हैं आपको नेताओं ने क्या दिया ये पूछ्ने की गलती शायद मुझे नहीं करनी चाहिए और आप भी जबाब बताकर हमें ठेस ना पहुंचाएं। वोट मांगने के लिए "गरीब" शायद बडे महत्तव की वस्तु है।
मेरे हिसाब से चुनाव और गरीब एक दूसरे के पर्याय ही हैं। सारे नेता बातों के पुल बांधने में माहिर हैं और हमें भी इन नेताओं की आदत हो गयी है। वो हमें सपने दिखते हैं और हमें भी इसमें बडा मजा आता है। ऐसा लगता है मानो ऐसे माहोल के लिये ही हम पैदा हुए हैं। इस बारे में कुछ सोचने से कोइ फायदा नहीं है क्योकि आज "राजनीति" पूरी तरह से व्यवसाय बन गया है। जितना मंत्री जी ने लगाया है वो तो सूद समेत वसूल करेंगे ही कुछ ज्यादा निकाल पाये तो उनके बच्च्रों के काम आयेगा।
क्या आपको वाकई लगता है कि कोइ आदमी पचासों लाख खर्च करके समाज सेवा करेगा। अगर समाज सेवा ही करनी होती तो अपने भाई बंधुओं के लिए सार्वजनिक नल लगवाता या कोइ अच्छा काम करता। सोच के देखो जो आदमी खुद किसी गरीब की डेढ बीघा जमीन दबा के बैठा है वो खाक समाज सेवा करेगा। चुनाव एक मजाक हैं जिसमें हमेशा ही गरीब का मजाक उडाया जाता है।
आजकल गरीब, शोषित, दलित वगैरह अच्छे चर्चा मे हैं। उनके विकास के तमाम मोडल मंत्रीजी के जुबान पे हैं पर प्रोजेक्ट पास होते होते दो ढाई साल तो निकल जाती है। पिछ्ली राजस्थान सरकार तो और भी बडी आलसी थी। उन्हें गरीब की याद तब आई जब वो कोमा में जाने वाले थे और योजना लागू करते करते वो कोमा मे चले ही गये, अब तो डॉक्टर भी उन्हें मृत घोषित कर चुके हैं। खैर ये भी अच्छी बात है के वो देर से जागे नहीं तो राज्य का सारा पैसा वो अब तक बॉट चुके होते और हम गरीब घोषित कर दिये जाते। फिर दुबारा वो लोग हमें गरीब बताकर वोट मॉग लेते। पिछ्ली सरकार कि तमाम योजनायें जन हित योजना नहिं जान बचाओ योजनायें थी।
गरीबों को जिंदगी देने की बात वो करते हैं जो खुद गरीबों का खून पीकर जिंदा रहते हैं। सुना है जब महमूद गजनबी भारत आया था तो बहुत सारा माल लूट कर ले गया था| चलो उस समय तो लट्ठ का ज़ोर था लूट लिया तो लूट लिया | परंतु मेरे भाइयो आज की हालत तो देखो मंत्रिजी ने इतना माल लूट रखा है कि उसे खुद नहीं पता कि उसके पास कितना माल पड़ा है| चारों तरफ पैसा ही पैसा पड़ा है इतना पैसा पड़ा है कि गिनती मे गिनना मुश्किल हो रहा है |
मुझे “गरीब” होने पर गर्व है| इतने दिन इन्हें झेला है आगे भी भगवान मुझे इन्हें झेलने कि हिम्मत दे|
“जय हिन्द”