आज शायद राजनीति के हिसाब से एक एतिहासिक दिन है | अभी कुछ देर पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल जी इस्तीफा देने का मन बना चुके है | सिर्फ 49 दिन चली ये आम आदमी की सरकार वो कर के चली गयी जिसकी शायद ही किसी को उम्मीद ना थी | इस्तीफा देने का मुख्य कारण जो सामने आया है वो है जन लोकपाल बिल | कॉंग्रेस और बीजेपी दोनों इस बार एक होते दिखाई दी | विधानसभा की कार्यवाही को सिरे से ही बहिष्कृत कर दिया गया | ऐसा लगता है की दोनों पहले से मन बना के आए थे की विधानसभा मे क्या करना है | विधानसभा के अंदर तांडव जैसा माहौल था | मुझे तो डर लगने लगा है अगर मुख्यमंत्री की कोई वैल्यू नहीं रही तो हम आम आदमी की क्या औकात है |
जो लोग हमेशा हम आम लोगों को धर्म, जाति, और समाज के नाम पर लड़ाते आए हैं उन्हें आपस मे लड़ते हुए देखकर रोमांच का अनुभव होता है | ये लोग तो हमसे भी गए गुजरे हैं | मुझे लगता है ये लोग उन कुत्तों की तरह हैं जो बीच मे पड़ी रोटी के लिए लड़ते रहते हैं |
कौन कहता है की देश मे एकता नहीं है | जब भी कभी नेताओं की सैलरी और भत्ते बढ़ाने की बात होती है तब नेता एक होते हैं | जब भी कभी पैसे खाने की बात होती हैं तो नेता साथ होते हैं, जब भी कभी ऐसे बिल पास होने की बात होती है जो उनकी ही गरेवान पकड़ ले तो नेता साथ होते हैं | हमें इन एक सूत्र मे बंधे हुए नेताओं की एकता संबंधी विचारो का आदर करना चाहिए | सच मे कितने महान हैं ये लोग |
केजरीवाल ने यह एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है जो एक तरफ तो यह दर्शाता है की उन्होने सीएम की कुर्सी छोड़ी क्योकि वो जनता के लिए जन लोकपाल बिल पास न करा सके परंतु वो जाते जाते दुबारा चुनाव कराने का मशवरा दे गए | जो उनकी मंशा और इस्तीफा देने के कारण को स्पष्ट करता है | कॉंग्रेस और बीजेपी इसे चुनावी स्टंट मन रही है | बीजेपी विपक्ष मे रहकर अपनी भूमिका अच्छी तरह निभा रही है परंतु कॉंग्रेस का कुछ समझ मे नहीं आ रहा है | केजरीवाल को समर्थन देते हुए उसका विरोध कर रही है या जन लोकपाल बिल का विरोध कर रही है | केजरीवाल जी ने आज एक बात सच कही की अच्छा किया जो जन लोकपाल बिल पास नहीं होने दिया अगर पास हो जाता तो कॉंग्रेस और बीजेपी के आधे विधायक जेल मे होते |
सच कहूँ तो ये तय था कि कॉंग्रेस और बीजेपी जन लोकपाल बिल पास नहीं होने देंगे परंतु क्या ये भी तय था कि केजरीवाल आज इस्तीफा देंगे | ये शायद इस घटनाक्रम मे बड़ा सवाल उभर के आता है | केजरीवाल साहब कॉंग्रेस और बीजेपी की राजनीतिक मंशा से भली भांति से परिचित हैं तो क्यों ना इस इस्तीफे के घटना क्रम को सोची समझी चाल माना जाए | सिर्फ एक दिन के प्रयास के बाद ही दम तोड़ देना | या तो केजरीवाल को ये पता था कि ये बिल कभी पास नहीं हो सकता या फिर वो इसी मौके कि तलाश मे भटक रहे थे | खैर इसके पीछे की राजनीतिक मंशा का पूरा विवरण तो मैं आपको नहीं दे पाऊँगा परंतु इतना जरूर कहना चाहूँगा कि जितना काम केजरीवाल ने इन डेढ़ महीनों मे किया है शायद औरों को इसमें एक साल लग जाती | अब राजस्थान की सरकार को ही ले लो डेढ़ महीनों मैं एक पत्ता भी शायद हिलाया हो | दूसरों के कपड़े फाड़ने से पहले अपनी गरेवान मजबूत कर लेनी चाहिए |
राजनीति मे आजकल अचानक से परिवर्तन आया है | नेता पैसा खाने की वजाय गरीबों के बारे मे सोचने मे लगे है | यहाँ तक कि राहुल गांधी भी रेल बजट पेश करने के लिए कुलियों की सलाह ले रहा है | अब शायद इन्हें अपने उच्च शिक्षित सलाहकारों पर भरोशा नहीं रहा या फिर उनका दिमाग कॉंग्रेस के साथ रह रह के भंगार हो गया हैं अब उन्हें जन हित के लिए सोचने मे परेशानी जो आ रही है, हाँ घोटाला कैसे करना है इसका प्लान उनके पास पहले से ही तैयार मिलेगा |
केजरीवाल जी ने बड़ी मछ्ली फाँसने कि लिए जाल फेंक तो दिया है पर कहीं ऐसा न हो कि बड़ी मछ्ली भी न फसे और छोटी मछलिया भी जाल से निकल जाए | वैसे लोकसभा चुनाव की तैयारी का ये ही बिलकुल सही वक़्त है क्या ये एक बड़ी लड़ाई का आगाज है ?
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