हमने कुत्तो को लड़ते देखा है गधों को भी लड़ते देखा है | पर वो हमेशा खाने के लिए ही लड़ते हैं | पर पहली बार हमने यह देखा है कि किसी छोटी सी बात को अपनी वैल्यू बढ़ाने के लिए उपयोग करना, हिंसा करना, मार पीट करना और लाठी चलाना ये सभी घटना क्रम हाल ही में सम्पन्न हुआ हैं | मुझे लगता है ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है | समय की मांग इतनी भी नहीं बढ़ी कि वोटों को बचाने के लिए लाठीयां चलानी पड़े, अभी शायद ये वक़्त नहीं आया है |
इस घटना क्रम पर अगर गौर करें तो हम पाएंगे कि हर एक जगह नियमों और संविधान को ताक पर रखकर ये सब बखेड़ा खड़ा किया गया है | पहले तो अरविंद केजरीवाल गुजरात गए वहाँ का विकास देखने, अरे खुद 50 दिन सरकार नहीं चला सके वो हमें ये बताएँगे कि मोदी ने क्या विकास किया है | आचार संहिता लागू होने के बाद वो बीस गाडियाँ लेकर वो गुजरात का काम देखते हैं अरे घूमने का इतना ही शौक है तो अकेले घूम लेते फौज लेके जाने की क्या जरूरत थी और जब केजरीवाल को पुलिस ने पकड़ लिया तो उसने अपने समर्थकों को भेजा ताकि वो दिल्ली मे हँगामा कर सकें |
लोकपाल बिल पास करने की बार आई एक ही दिन मे इस्तीफा देकर भाग गए और जब खुद पर बात आई तो हंगामा कर दिया | मुझे तो इसमे कहीं भी अहिसा और देशभक्ति नजर नहीं आ रही है | अगर मार खाकर सहानभूति में वोट लेने का आपका प्लान हैं तो हम भी यहाँ खाली बैठे हैं | गुंडे किराए पे लाकर उनसे मार खालों यहाँ देश का माहौल क्यों खराब कर रहे हो |
जब से आम आदमी पार्टी अस्तित्व मे आई हैं तब से ही सब ओर अराजकता छा गयी है, लोग पागल हो गए हैं, पुलिस दर्शक बन गयी हैं | पुलिस वाले भी बेचारे बड़ी दुबिधा मे हैं अगर वो लाठी चार्ज करके उन्हें वहाँ भगा देते तो केजरीवाल ये साबित कर देते कि पुलिस और बीजेपी मिली हुए हैं | जो लोग दूसरे के घर मे आग लगाकर रोटी बनाते हैं कभी न कभी उनके घर मे भी आग लगती है और जब आग लगती हैं तो बुझती नहीं हैं | कॉंग्रेस चोर हैं कॉंग्रेस निकम्मी हैं ऐसे करके तो ये दिल्ली मे सीटें जीते हैं और अब इनके पास नया मुद्दा है वो हैं मोदी चोर हैं मोदी निकम्मा हैं अरे पहले ये तो बता दो कि तुम क्या हो |
सच बता रहा हूँ गलती से एक सीट भी इसको मत जीता देना वरना सारी ज़िंदगी ये सोचने मे चली जाएगी कि वो मुझे बेवकूफ कैसे बना गया है | केजरीवाल एक जादूगर हैं और जादू का खेल धोखे का खेल होता हैं | जादूगर जितनी बार खेल दिखाता है उतनी बार धोखा देता हैं इस खेल में वो माहिर हैं दिल्ली मे बिजली के बिल कम किए, ऑडिट कराया शीला दीक्षित के खिलाफ भी तो सबूत थे पर वो समर्थन मे दाब गए और नोटों का बोझ इतना ज्यादा है कि फ़ाइल निकाल ही पा रही हैं | अगली बार जब वो दुबारा चुनाव लड़ेंगे तब फिर से यही मुद्दा लेकर आएंगे इस बात का हमें पूर्ण विश्वास हैं |
समाजसेवा और राजनीति दोनों लगती एक जैसी हैं पर हैं बिलकुल उलट | कहते हैं सत्ता का नशा जब चढ़ता है तो आदमी तो क्या ईमान तक हिल जाता है | एक अच्छा नेता वही होता है जो समाजसेवा से शुरुआत करके अपनी राजनीतिक रोटी सेके, यही राजनीति कि सीढ़ी हैं |
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