Monday, 10 February 2014

गरीब : एक उपहास

आजकल “गरीब” बेहद उपयोगी वस्तु है। चारो तरफ गरीब की मॉग बढती जा रही है। इन दिनों नेता जी भी इन्हें खूब भाव दे रहें हैं। किसी भी नेता जी का आप भाषण सुनें उनके पास एक ही विषय है जिसके जरिये वो वोट मांगते नजर आते हैं वह है "गरीब"। "गरीब" आजकल चुनावी भाषण की शान बन गया है। यही वो वक्त है जब "गरीब" की जय जयकार होती है। वैसे हम और आप "गरीब" ही हैं आपको नेताओं ने क्या दिया ये पूछ्ने की गलती शायद मुझे नहीं करनी चाहिए और आप भी जबाब बताकर हमें ठेस ना पहुंचाएं। वोट मांगने के लिए "गरीब" शायद बडे महत्तव की वस्तु है।
मेरे हिसाब से चुनाव और गरीब एक दूसरे के पर्याय ही हैं। सारे नेता बातों के पुल बांधने में माहिर हैं और हमें भी इन नेताओं की आदत हो गयी है। वो हमें सपने दिखते हैं और हमें भी इसमें बडा मजा आता है। ऐसा लगता है मानो ऐसे माहोल के लिये ही हम पैदा हुए हैं। इस बारे में कुछ सोचने से कोइ फायदा नहीं है क्योकि आज "राजनीति" पूरी तरह से व्यवसाय बन गया है। जितना मंत्री जी ने लगाया है वो तो सूद समेत वसूल करेंगे ही कुछ ज्यादा निकाल पाये तो उनके बच्च्रों के काम आयेगा।
क्या आपको वाकई लगता है कि कोइ आदमी पचासों लाख खर्च करके समाज सेवा करेगा। अगर समाज सेवा ही करनी होती तो अपने भाई बंधुओं के लिए सार्वजनिक नल लगवाता या कोइ अच्छा काम करता। सोच के देखो जो आदमी खुद किसी गरीब की डेढ बीघा जमीन दबा के बैठा है वो खाक समाज सेवा करेगा। चुनाव एक मजाक हैं जिसमें हमेशा ही गरीब का मजाक उडाया जाता है।
आजकल गरीब, शोषित, दलित वगैरह अच्छे चर्चा मे हैं। उनके विकास के तमाम मोडल मंत्रीजी के जुबान पे हैं पर प्रोजेक्ट पास होते होते दो ढाई साल तो निकल जाती है। पिछ्ली राजस्थान सरकार तो और भी बडी आलसी थी। उन्हें गरीब की याद तब आई जब वो कोमा में जाने वाले थे और योजना लागू करते करते वो कोमा मे चले ही गये, अब तो डॉक्टर भी उन्हें मृत घोषित कर चुके हैं। खैर ये भी अच्छी बात है के वो देर से जागे नहीं तो राज्य का सारा पैसा वो अब तक बॉट चुके होते और हम गरीब घोषित कर दिये जाते। फिर दुबारा वो लोग हमें गरीब बताकर वोट मॉग लेते। पिछ्ली सरकार कि तमाम योजनायें जन हित योजना नहिं जान बचाओ योजनायें थी।
गरीबों को जिंदगी देने की बात वो करते हैं जो खुद गरीबों का खून पीकर जिंदा रहते हैं। सुना है जब महमूद गजनबी भारत आया था तो बहुत सारा माल लूट कर ले गया था| चलो उस समय तो लट्ठ का ज़ोर था लूट लिया तो लूट लिया | परंतु मेरे भाइयो आज की हालत तो देखो मंत्रिजी ने इतना माल लूट रखा है कि उसे खुद नहीं पता कि उसके पास कितना माल पड़ा है| चारों तरफ पैसा ही पैसा पड़ा है इतना पैसा पड़ा है कि गिनती मे गिनना मुश्किल हो रहा है |
मुझे “गरीब” होने पर गर्व है| इतने दिन इन्हें झेला है आगे भी भगवान मुझे इन्हें झेलने कि हिम्मत दे|
“जय हिन्द”

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